एक मैला तिरंगा उस छत पर लहरा रहा था ,
देश का हश्र अपने हाल से वो बता रहा था ,
बेबसी ,बेरुखी और गुमनामी का हाल ,
मूक रह बयां किये जा रहा था ।।
अकड़ के देश प्रेम में उसने लगाया था ,
जिसको खुद को माँ का लाल बताया था ,
लगा के मुझे यहाँ शायद वो भूल गया ,
क्या यही थी भक्ति जो उसने बतलाया था ॥
हठ कर बैठा कि मुझे सर मौर बनाना है ,
दुनिआ के सामने खुदको देश भक्त दिखाना है ,
दो दिन निभा न सका खुदको किआ वादा ,
और दावा करता है कि उसी को देख बनाना है ॥
नेता सब खामोश ,युवा बेहोश
और जनता अफ़सोस में है ,
जैसा मैंने आज देखा ,
कुछ ऐसा ही हाल ,तिरंगे का हमारे देश में है ॥