Saturday, 10 March 2012

" Bachपन "

खुश रहते थे कितना जब हम बच्चे कहलाये जाते थे,
कभी किसी खिलोने की जिद कर दी तो ,
कितने प्यार से फुसलाये जाते थे...
हसने को मिल जाती थी हजारो वजह ,
आज वही मुस्कराहट धुंडने में अरसे बीत जाते हैं ,
खो जाते हैं वक़्त की आंधी में हम ,
अरसे यूँ ही बीतते जाते हैं,
अधूरी रह जाती हैं लाखो हसरते,
हजारो पूरी भी हो जाती हैं,
पा जाते हैं वोह जो अपना है यहाँ,
जो न हासिल हो वोह सपना है यहाँ,
वक़्त तोह मंजिल धुंडने में ही निकल जायेगा,
चल साथ मेरे चार पल जी  ले 'अनु',
यह पल कल न आएगा... 

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